
जैसे दिवाली चराग़ों के बिना अधूरी लगती है वैसे ही शायरी भी चरागों के बिना अधूरी है। ऐसा शायद ही कोई शायर हो जिसने चराग़ पर दो-चार शे’र न कहें हों। दिवाली का मौक़ा है , तो सोचा क्यों न चरागों को एक जगह तरतीब से जलाया जाए। शायर जो चराग़ जलाता है वो चराग़ कहीं तो अँधेरा चूसते हैं, कहीं आँधियों से टक्कर लेते हैं, कहीं दमागों को रौशन करते हैं और कहीं तनहाइयों के साथी हैं। आजकल शायर शम्मा कम जलाते हैं लेकिन चराग़ हर जगह रौशन करते हैं। दीपावली की शुभ कामनाओं के साथ मुलाहिज़ा फ़रमांए चरागों पर कहे ये खूबसूरत अशआर-
दिल है गोया चराग किसी मुफलिस का
शाम ही से बुझा सा रहता है..मीर

बू-ए-गुल, नालह-ए-दिल, दूद-ए-चिराग़-ए-मह्फ़िल
जो तिरी बज़्म से निकला सो परेशां निकला..गा़लिब

यह नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
तेरे ख़्याल की खुश्बू से बस रहे हैं दिमाग़..फ़िराक़

ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है
अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहाँ है..बशीर बद्र

कहाँ तो तय था चरागां हरेक घर के लिए
कहाँ चराग मय्यसर नहीं शहर के लिए.. दुश्यंत

दिल में दिए जला के अंधेरे में जीना सीख
बुझते हुए चिराग़ का मातम फ़ुज़ूल है..कौसर सद्दीकी

मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या
ये चिराग़ कोई चिराग़ है न जला हुआ न बुझा हुआ..बशीर बद्र

हम चिराग़-ए-शब ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना.
रात थी किस का मुक़द्दर और सहर देखेगा कौन.. अहमद फ़राज़

आज की शब ज़रा ख़ामोश रहें सारे चराग़
आज महफिल में कोई शम्अ फ़रोजां होगी..नुसरत मेंहदी

दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
यह इक चिराग़ कई आँधियों पे भारी है..वसीम बरेलवी

ये किस मुक़ाम पे ले आई जुस्तजू तेरी
कोई चिराग़ नहीं और रोशनी है बहुत..किर्श्न बिहारी नूर

जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा
किसी चराग का अपना मकां नहीं होता.. वसीम बरेलवी

कोई फूल बन गया है, कोई चाँद, कोई तारा
जो चिराग़ बुझ गए हैं तेरी अंजुमन में जल के

मेरे मन की अयोध्या में न जाने कब हो दीवाली
अभी तो झलकता है राम का बनवास आँखों में..साग़र पालमपुरी

यही चिराग़ जो रोशन है बुझ भी सकता था
भला हुआ कि हवाओं का सामना न हुआ..महताब हैदर नक़बी

कुछ आज शाम ही से है दिल भी बुझा-बुझा
कुछ शहर के चिराग़ भी मद्धम हैं दोस्तो ..अहमद फ़राज़

हमने हर गाम पे सजदों के जलाये हैं चिराग़
अब तिरी राहगुज़र, राहगुज़र लगती है..जां निसार अख़तर

आईये चराग-ए-दिल आज हीं जलाएँ हम,
कैसी कल हवा चले कोई जानता नहीं

चराग अपने थकान की कोई सफ़ाई न दे
वो तीरगी है के अब ख्वाब तक दिखाई ना दे

अजब चराग हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे

मंज़िल न दे चराग न दे हौसला तो दे,
तिनके का ही सही तू मगर आसरा तो दे,.

तूने जलाईं बस्तियाँ ले-ले के मशअलें
अपना चराग़ अपने ही हाथों बुझा के देख.. देवेन्द्र शर्मा 'इन्द्र'

रोशन रहे चराग़ उसी की मज़ार पर
ताज़िन्दगी जो दिल में उजाला लिए जिया..चिराग जैन

हमने उन तुन्द हवाओं में जलाये हैं चिराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर..जां निसार अख़तर

अंधेरे जश्न मनाने की भूल करते हैं
चिराग़ अब भी हवाओं पे वार करता है..इसहाक़ असर इन्दौरी

जब भी चूम लेता हूँ उन हसीन आँखों को,
सौ चिराग़ अँधेरे में झिलमिलाने लगते हैं .. कैफ़ी आज़मी

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चिराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चिराग़

कहाँ से ढूँढ के लाऊं चराग़ से वो बदन
तरस गई हैं निगाहें कंवल-कंवल के लिए

चिराग़ हो कि ना हो, दिल जला के रखते हैं
हम आंधियों में भी तेवर बला के रखते हैं मिला..हसती

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ ...इकबाल

इस एक ज़ौम में जलते हैं ताबदार चराग़
हवा के होश उड़ाएँगे बार - बार चराग़...बुनियाद हुसैन ज़हीन

उदास उदास शाम में धुआं धुआं चराग हैं
हमें तेरे ख्याल में मिली फकत चुभन चुभन ..मरयम गजाला

अब चराग ढूँढता हूँ के थोड़ी रौशनी मिले
अँधेरे में खो गया इक जरूरी सवाल मियाँ

हवाओं को थाम लो ये फुर्क़त की शाम है
आहिस्ता साँस लो कि अब बुझता चराग है

चराग अपने थकान की कोई सफ़ाई न दे
वो तीरगी है के अब ख्वाब तक दिखाई ना दे

चराग़-ओ-आफ़्ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
शबाब की नक़ाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी

हरेक मठ में जला फिर दिया दिवाली का,
हरेक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
अजब बहार का है दिन बना दिवाली का..नज़ीर

तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों मे चराग
जब भी तू आए जगाता हुआ जादू आए

उन्हें चिराग़ कहाने का हक़ दिया किसने
अँधेरों में जो कभी रौशनी नहीं देते ..द्विजेंद्र द्विज

आज बिखरी है हवाओं में चरागों की महक
आज रौशन है हवा चाँद-सितारों की तरह..सतपाल ख़याल
अब एक शे’र बहुत ही अज़ीम शायर का ,मोहतरम खुमार बाराबंकवी जिनका अंदाज़ ही निराला था।
आँखों के चराग़ों मे उजाले न रहेंगे
आ जाओ कि फिर देखने वाले न रहेंगे
और इस सुहावनी शाम को खुमार साहब की ग़ज़ल सुनिए जिसे गाया है मेरे मनपसंद गायक हंस राज हंस ने जिसकी आवाज़ दरगाहों में जलते चरागों सी रौशन है -
आज की ग़ज़ल से जुड़े तमाम शायरों और पाठकों को दीवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं!!