Wednesday, June 2, 2010

श्री मनोहर शर्मा ‘साग़र’ पालमपुरी को श्रदाँजलि















सर्द हो जाएगी यादों की चिता मेरे बाद
कौन दोहराएगा रूदाद—ए—वफ़ा मेरे बाद
आपके तर्ज़—ए—तग़ाफ़ुल की ये हद भी होगी
आप मेरे लिए माँगेंगे दुआ मेरे बाद

30 अप्रैल को, श्री मनोहर शर्मा ‘साग़र’ पालमपुरी जी की पुण्य तिथी थी. उनकी ग़ज़लों का प्रकाशन हमारी तरफ़ से उस अज़ीम शायर को श्रदाँजलि है.शायर अपने शब्दों मे हमेशा ज़िंदा रहता है और सागर साहब की शायरी से हमें भी यही आभास होता है कि वो आज भी हमारे बीच में है.सागर साहेब 25 जनवरी 1929 को गाँव झुनमान सिंह , तहसील शकरगढ़ (अब पाकिस्तान)मे पैदा हुए थे और 30 अप्रैल, 1996 को इस फ़ानी दुनिया से विदा हो गए. लेकिन उनकी शायरी आज भी हमारे साथ है और साग़र साहेब द्वारा जलाई हुई शम्मा आज भी जल रही है, उस लौ को उनके सपुत्र श्री द्विजेंद्र द्विज जी और नवनीत जी ने आज भी रौशन कर रखा है.साग़र साहेब की कुछ चुनिंदा ग़ज़लों को हम प्रकाशित कर रहे हैं:

एक

बेसहारों के मददगार हैं हम
ज़िंदगी ! तेरे तलबगार हैं हम

रेत के महल गिराने वालो
जान लो आहनी दीवार हैं हम

तोड़ कर कुहना रिवायात का जाल
आदमीयत के तरफ़दार हैं हम

फूल हैं अम्न की राहों के लिए
ज़ुल्म के वास्ते तलवार हैं हम

बे—वफ़ा ही सही हमदम अपने
लोग कहते हैं वफ़ादार हैं हम

जिस्म को तोड़ के जो मिल जाए
ख़ुश्क रोटी के रवादार हैं हम

अम्न—ओ—इन्साफ़ हो जिसमें ‘साग़र’!
उस फ़साने के परस्तार हैं हम

रमल की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ाइलातुन फ़'इ'लातुन फ़ालुन
2122 1122 22/112

दो

रात कट जाये तो फिर बर्फ़ की चादर देखें
घर की खिड़की से नई सुबह का मंज़र देखें

सोच के बन में भटक जायें अगर जागें तो
क्यों न देखे हुए ख़्वाबों में ही खो कर देखें

हमनवा कोई नहीं दूर है मंज़िल फिर भी
बस अकेले तो कोई मील का पत्थर देखें

झूट का ले के सहारा कई जी लेते हैं
हम जो सच बोलें तो हर हाथ में ख़ंजर देखें

ज़िन्दगी कठिन मगर फिर भी सुहानी है यहाँ
शहर के लोग कभी गाँओं में आकर देखें

चाँद तारों के तसव्वुर में जो नित रहते हैं
काश ! वो लोग कभी आ के ज़मीं पर देखें

उम्र भर तट पे ही बैठे रहें क्यों हम ‘साग़र!’
आओ, इक बार समंदर में उतर कर देखें

रमल की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ाइलातुन फ़'इ'लातुन फ़'इ'लातुन फ़ालुन
2122 1122 1122 112

तीन

जिसको पाना है उसको खोना है
हादिसा एक दिन ये होना है

फ़र्श पर हो या अर्श पर कोई
सब को इक दिन ज़मीं पे सोना है

चाहे कितना अज़ीम हो इन्साँ
वक़्त के हाथ का खिलोना है

दिल पे जो दाग़ है मलामत का
वो हमें आँसुओं से धोना है

चार दिन हँस के काट लो यारो!
ज़िन्दगी उम्र भर का रोना है

छेड़ो फिर से कोई ग़ज़ल ‘साग़र’!
आज मौसम बड़ा सलोना है

खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ा’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन
2122 1212 22/112

चार

शाम ढलते वो याद आये हैं
अश्क पलकों पे झिलमिलाये हैं

दिल की बस्ती उजाड़ने वाले
मेरी हालत पे मुस्कुराये हैं

कोई हमदम न हमनवा कोई
हर तरफ़ रंज-ओ-ग़म के साये हैं

बाग़-ए-दिल में बहार आई है
ज़ख़्म गुल बन के खिलखिलाये हैं

वक़्त-ए-मुश्किल न कोई काम आया
हमने सब दोस्त आज़माये हैं

क़िस्सा-ए-ग़म सुनायें तो किसको
आज तो अपने भी पराये हैं

इन बहारों पे ऐतबार कहाँ
हमने इतने फ़रेब खाये हैं

प्यार की रहगुज़र पे ए ‘साग़र’!
हम कई मील चल के आये हैं

खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ा’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन
2122 1212 22/112

8 comments:

माधव( Madhav) said...

i tribute to him

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

‘साग़र’ पालमपुरी जी से तार्रुफ़ कराया आपने... बहुत शुक्रिया आपका!

एक एक शेर कहें तो नर्म और वजनी है.

"अर्श" said...

साग़र पालमपुरी साहब को मेरे तरफ से विनम्र श्रधांजलि ! इस अज़ीम शाईर के बारे में जीतनी बात की जाये कम पद जाएगी सतपाल भाई ! उनकी ग़ज़लों से मुखातिब आपके ही इस ब्लॉग पर होता रहा हूँ ! जनाब द्विज जी को कौन नहीं जानता उनकी अपनी ग़ज़लों के फेन के मुताबिक़ ... मगर ये तो उनके खून में है तो ये लाज़मी तो है ही ! साग़र साहब की सारी गज़लें कमाल की हैं ... सच कहा अपने के वो अपनी इन खुबसूरत ग़ज़लों के साथ आज भी हमारे पास जीवित हैं...


अर्श

तिलक राज कपूर said...

इन बेहतरीन ग़ज़लों की प्रस्‍तुति से बेहतर श्रद्धॉंजलि क्‍या हो सकती है। ग़ज़ल कहना सीखने वालों को ये ग़ज़लें बार-बार पढ़ना चाहिये। तहत में ये ग़ज़लें पढ़ो तो लगता है शाइर से रूबरू हैं।
यूँ तो शाइरी में ऐसी रवायत नहीं लेकिन सोने पर सुहागा की स्थिति है कि द्विज जी और नवनीत जी परंपरा को कायम रखते हुए ऐसी ही उम्‍दा शाइरी कर रहे हैं।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

श्रद्धेय श्री मनोहर शर्मा ‘साग़र’ पालमपुरी जी
को मेरा शत शत नमन ! वंदन ! श्रद्धांजलि !

आपकी ये ग़ज़लें साहित्य जगत के लिए बहुमूल्य धरोहर है । "आज की ग़ज़ल" को इन ग़ज़लों के प्रकाशन के लिए धन्यवाद !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Navneet Sharma said...

भाई माधव जी, सुलभ जी, अर्श जी, श्री तिलक राज कपूर जी और भाई श्री राजेंद्र स्‍वर्णकार जी। आप सबके उदगारों के लिए शुक्रिया।

पिता जी हमारे दोस्‍त भी थे। आज यह पोस्‍ट देखी तो आंख नम हो आई। आप सबका दिल से धन्‍यवाद।

Navneet Sharma said...

भाई माधव जी, सुलभ जी, अर्श जी, श्री तिलक राज कपूर जी और भाई श्री राजेंद्र स्‍वर्णकार जी। आप सबके उदगारों के लिए शुक्रिया।

पिता जी हमारे दोस्‍त भी थे। आज यह पोस्‍ट देखी तो आंख नम हो आई। आप सबका दिल से धन्‍यवाद।

संजय भास्‍कर said...

साग़र साहब की सारी गज़लें कमाल की हैं ... सच कहा अपने के वो अपनी इन खुबसूरत ग़ज़लों के साथ आज भी हमारे पास जीवित हैं...