Saturday, February 7, 2015

ग़ज़ल-विजय धीमान












मेरे अज़ीज दोस्त विजय धीमान की एक खूबसूरत ग़ज़ल-

अपने कौन पराये कौन
हमको ये समझाये कौन।

बस इक ही मुशकिल है प्यारे
सच को सच बतलाये कौन।


गांठ के ऊपर गांठ लगी है
इसको अब सुलझाये कौन।

दिल से दिल की बात हुई पर
दिल की बात बताये कौन।

उसका आना नामुमकिन है
लेकिन उस तक जाये कौन।

अंधी नगरी चौपट राजा
इसको रस्ते लाये कौन।

बादल आखिर बादल ठहरा
परबत को समझाये कौन।

बहर के पक्ष की अगर बात करूँ तो - २२ २२ २२ २२ और २२ २२ २२ २१ ,कुछ इस तरह का प्रयोग जगजीत की गाई ग़ज़ल में भी मिलता है- मुँह की बात सुने हर कोई,दिल के दर्द को जाने कौन।बहर को लेकर मतभेद हो सकता है॥