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Tuesday, May 27, 2008

ज़हीर कुरैशी जी की ग़ज़लें..

परिचय:

जन्म तिथि: 5 अगस्त,1950
जन्मस्थान: चंदेरी (ज़िला:गुना,म.प्र.)
प्रकाशित ग़ज़ल—संग्रह:लेखनी के स्वप्न(१९७५),एक टुकड़ा धूप(1979),चाँदनी का दु:ख(1986),समन्दर ब्याहने आया नहीं है(1992),भीड़ में सबसे अलग(2003)
संपर्क: समीर काटेज, बी—21,सूर्य नगर,शब्द प्रताप आश्रम के पास,
ग्वालियर—4740129(म.प्र.)फोन: 094257 90565.


एक.

अँधेरे की सुरंगों से निकल कर
गए सब रोशनी की ओर चलकर

खड़े थे व्यस्त अपनी बतकही में
तो खींचा ध्यान बच्चे ने मचलकर

जिन्हें जनता ने खारिज कर दिया था
सदन में आ गए कपड़े बदलकर

अधर से हो गई मुस्कान ग़ायब
दिखाना चाहते हैं फूल—फलकर

लगा पानी के छींटे से ही अंकुश
निरंकुश दूध हो बैठा, उबलकर

कली के प्यार में मर—मिटने वाले
कली को फेंक देते हैं मसलकर

घुसे जो लोग काजल—कोठरी में
उन्हें चलना पड़ा बेहद सँभलकर

1222,1222,122(Hazaj ka zihaaf)



दो.

घर छिन गए तो सड़कों पे बेघर बदल गए
आँसू, नयन— कुटी से निकल कर बदल गए

अब तो स्वयं—वधू के चयन का रिवाज़ है
कलयुग शुरू हुआ तो स्वयंवर बदल गए

मिलता नहीं जो प्रेम से, वो छीनते हैं लोग
सिद्धान्त वादी प्रश्नों के उत्तर बदल गए

धरती पे लग रहे थे कि कितने कठोर हैं
झीलों को छेड़ते हुए कंकर बदल गए

होने लगे हैं दिन में ही रातों के धत करम
कुछ इसलिए भि आज निशाचर बदल गए

इक्कीसवीं सदी के सपेरे हैं आधुनिक
नागिन को वश में करने के मंतर बदल गए

बाज़ारवाद आया तो बिकने की होड़ में
अनमोल वस्तुओं के भी तेवर बदल गए.


221,2121,1221,212 (muzaare)
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