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Sunday, March 29, 2009

कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में-भाग एक

नसीम भरतपु्री जो कि मिर्ज़ा दा़ग के प्रिय शाग्रिद थे उन्हीं की ग़ज़ल से ये मिसरा लिया था.उस ग़ज़ल कुछ अशआर पेश हैं:

नहीं करते उन्हें कुछ देर लगती है न हाँ करते
कभी इन्का़र चुटकी मे कभी इक़रार चुटकी मे

लिया था इस ज़मीं मे इम्तिहाने-तबअ यारों ने
किये मौजूं ये हमने ए नसीम अशआर चुटकी में.

इन तरही ग़ज़लों का पहला भाग पेश कर रहे हैं दूसरा जल्द ही प्रकाशित करेंगे.पेश है 10 तरही ग़ज़लें :

मिसरा -ए-तरह : "कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में"


सबसे पहले पेश है ख़ुर्शीदुल हसन नय्यर(सऊदी अरब)की ग़ज़ल :

किए हैं आज मौज़ूँ मैंने कुछ अशआर चुटकी में
दिली जज़बात का होने लगा इज़हार चुटकी में

कभी बरसों गुज़र जाता है देखे प्यार का मौसम
कभी आ जाती है फ़स्ले-बहारे-प्यार चुटकी में

मसीहा बन के तुम आ जाओ जो ख़्वाबों की दुनिया में
*शफ़ा पा जाएगा मेरा दिले-बीमार चुटकी में

वह शोख़ी याद है जाने तमन्ना तुमसे मिलने की
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे

किया है *किश्ते दिल की *आबयारी अश्क से बरसों
नहीं होता है कोई भी चमन गुलज़ार चुटकी में

नहीं है साथ कोई मुफलिसी में पर यकीं जानो
जो माल आया तो बन जाएँगे कितने यार चुटकी में

तुम्हारी बेरुख़ी पर हो गया बेचैन पल भर में
मगर फिर गुफ़्तगू से हो गया *सरशार चुटकी में

कहीं टूटे न यह दिल आइना है यह मोहब्बत का
सो उसकी बात का नय्यर किया इक़रार चुटकी में

*शफ़ा पा जाएगा-अच्छा हो जाएगा,*किश्ते दिल-दिल की खेती,आबयारी-सिंचाई,सरशार-खुश




अब पेश है पुर्णिमा वर्मन की ये ग़ज़ल:

कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में
कभी सर्दी ,कभी गर्मी, कभी बौछार चुटकी में

ख़ुदाया कौन-से बाटों से मुझको तौलता है तू
कभी तोला, कभी माशा, कभी संसार चुटकी में

कभी ऊपर ,कभी नीचे ,कभी गोते लगाता सा
अजब बाज़ार के हालात हैं लाचार चुटकी में

ख़बर इतनी न थी संगींन अपने होश उड़ जाते
लगाई आग ठंडा हो गया अख़बार चुटकी में

न चूड़ी है, न कंगन है, न पायल है ,न हैं घुँघरू
मगर बजती रही फिर भी कोई झनकार चुटकी में




मेरे प्रिय मित्र नवनीत शर्मा की ये ग़ज़ल:

बदल दी चोट खाए बाज़ुओं ने धार चुटकी में
छिना था मेरे हाथों से जहाँ पतवार चुटकी में

उन्हें तुमने कहा था एक दिन बेकार चुटकी में
चढ़े आते हैं टी.वी. पे जो अब फ़नकार चुटकी में

जगाई याद की तूने अजब झंकार चुटकी में
लो मेरे दिल के फिर से बढ़ गए आज़ार चुटकी में

मोहब्‍बत, चैन या एतमाद की मंजिल नहीं मुश्किल
मेरे कदमों को तू बख़्शे अगर रफ़्तार् चुटकी में

न माथे पर शिकन कोई, न दिल में हूक, हैरत है
यही हैं लोग क्‍या, जिनका छिना घर-बार चुटकी में

यह दुनिया हाट हो जैसे, है बिकवाली ज़रूरत की
कि सर पर से हथेली ले गई दस्‍तार चुटकी में

अजब उलझन का ये मौसम कि जानम भी सियासी है
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में

सुनो, जागो, उठो, देखो कि बरसों बाद मौका है
अभी तुमको गिराने हैं कई सरदार चुटकी में

'नहीं' कहना हुनर ऐसा जिसे हम सीख न पाए
जो हमसे खाल भी माँगी, कहा, 'सरकार! चुटकी में'

अकेले जूझना है जीस्‍त नदिया, मौत सागर से
यहाँ कोई नहीं ले जाए जो उस पार चुटकी में

है बहरो-वज़्न कैसा ये तो द्विज उस्ताद ही जाने
कहा सतपाल ने तो कह दिए अश्‍आर चुटकी में




चंद्रभान भारद्वाज की ये ग़ज़ल :

सुलझ जाते हैं उलझे प्रश्न कितनी बार चुटकी में;
सफलता पर नहीं मिलती किसी को यार चुटकी में।

कभी होता नहीं तो ज़िन्दगी भर तक नहीं होता,
कभी होता किसी की बात का एतबार चुटकी में।

कई मझधार में डूबे, कई डूबे किनारे पर,
हमारी नाव पर उसने लगाई पार चुटकी में।

उठी टेढ़ी नज़र तो छा गई माहौल में चुप्पी,
मधुर मुसकान से महफिल हुई गुलज़ार चुटकी में।

पड़ा इक इस किनारे पर, पड़ा इक उस किनारे पर,
अचानक जोड़ जाता वक्त टूटे तार चुटकी में।

करें भी तो करें कैसे भरोसा दोमुहों पर हम,
कभी तो प्यार चुटकी में, कभी तकरार चुटकी में।

हुआ है प्यार 'भारद्वाज' अब इक खेल गुड़ियों का,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे




डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी की ग़ज़ल

बदलता रहता है हर दम मिज़ाजे-यार चुटकी में ,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे

कहीं ऐसा न हो हो जाए वह बेज़ार चुटकी में
तुम उस से कर रहे हो दिल्लगी बेकार चुटकी में

दिले नादां ठहर, अच्छी नहीं यह तेरी बेताबी
नहीं होती है राह-ए-वस्ल यूँ हमवार चुटकी में

अगर चशमे -इनायत हो गई उसकी तो दम भर में
वह रख देगा बदल कर तेरा हाल-ए-ज़ार चुटकी में

अगर मर्ज़ी नहीं उसकी तो तुम कुछ कर नहीं सकते
अगर चाहे तो हो जाएगा बेड़ा पार चुटकी में

बज़ाहिर नर्म दिल है ,वो कभी ऐसा भी होता है
वो हो जाता है अकसर बर-सरे पैकार चुटकी में

कभी भूले से भी करना न तुम उसकी दिल आज़ारी
बदल जाती है उसकी शोख़ी -ए -गुफ़्तार चुटकी में

सँभल कर सब्र का तुम लेना उसके इम्तिहाँ वरना
पलट कर वो कहीं कर दे न तुम पर वार चुटकी में

हमेशा याद रखना वो बहुत हस्सास है 'बर्क़ी'
अगर ख़ुश है तो हो जाएगा वो तैयार चुटकी में





मेरे प्रिय मित्र विजय धीमान(हमीरपुर से):

ग़ज़ल

जो आँखें बंद कर लो तो मिटे संसार चुटकी में
जो आँखे खोल कर देखो तो सब साकार चुटकी में

कभी है प्यार चुटकी में , कभी इनकार चुटकी में
हमारी जीत चुटकी में, हमारी हार चुटकी में

हमारा दिल निकलता है , हमारी जान जाती है
कभी इन्कार चुटकी में ,कभी इकरार चुटकी में

चली जब पेट पर छुरियाँ हुआ मालूम तब हमको
कि साज़िश थी बड़ी ग़हरी घटी जो यार चुटकी में

तुम्हारी जिन अदाओं पर हमारी ज़िंदगी कुरबां
मरे है उन अदाओं पर सकल संसार चुटकी में

जो मीठे बोल हों साथी तो रस घुलता है आलम में
अखरते बोल पर भैया तने तलवार चुटकी में

कभी हँसना, कभी रोना ,कभी पाना, कभी खोना
ये जीवन एक उलझन है न सुलझे यार चुटकी में




जोगेश्वर गर्ग(राजस्थान से)

ग़ज़ल

बदलता है भला ऐसे कभी व्यवहार चुटकी में
लड़ो भी एक पल में और कर लो प्यार चुटकी में

दिलों का मेल होना और वह भी ज़िंदगी भर का
नहीं होता कभी इतना बड़ा व्यापार चुटकी में

सुना मैंने तुम्हारे शह्र की ऐसी रिवायत है
कभी इन्कार चुटकी में , कभी इकरार चुटकी में

बदलने का अगर है शौक़ तो बदलो ज़रा मुझको
बदलते हो वतन मे जिस तरह सरकार चुटकी में

कहो नाराज़ क्यों हो पूछता है आज "जोगेश्वर"
उसे भी तो किसी दिन तुम करो स्वीकार चुटकी में




दिगम्बर नासवा की ग़ज़ल

चले अब छोड़ कर तेरा ये हम संसार चुटकी में
कि जोगी बन गए हम छोड़ कर घर बार चुटकी में

समझ पाया नहीं मैं अब तलक तेरे इरादों को
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में

तुम्हारे प्यार के जादू ने कैसा खेल खेला है
अभी आया था मंगल, आ गया इतवार चुटकी में

वो जिसके हाथ में इन्साफ़ के मंदिर की चाबी है
वही कातिल है बैठा है जो बन अवतार चुटकी में

ये घर का राज़ है तुम दफ़्न सीने मे करो इसको
नहीं तो टूट जायेंगे दरो-दीवार चुटकी में

किसी बादल के टुकड़े पर लगे हैं पंख खुशियों के
कहीं बरसेगा बन के गीत की झंकार चुटकी में




ग़ज़ल : मोहम्मद वलीउल्लाह वली

सितम कैसा यह करते हो मेरे सरकार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी

हुई जिस दम किसी से मेरी आँखें चार चुटकी में
ख़िज़ाँ दीदह मेरा दिल हो गया गुलज़ार चुटकी में

न जाने क्या अजब अंदाज़ है उशवा तराज़ों का
कभी तो वाद-ए-उलफ़त कभी तकरार चुटकी में

तुम्हारे इश्क़ ने मुझको बना डाला है सौदाई
तुम्हीं करते हो यूँ मुझको ज़लीलो- ख़्वार चुटकी में

मेरे हाथों में है बस इक इसी उम्मीद का दामन
बदल देती है क़िस्मत इक निगाह-ए-यार चुटकी में

जनाबे- हज़रते -वाइज़ हक़ीक़त से हैं नावाक़िफ
मैं दीवाना हूँ मैं जाउँगा सूए-दार चुटकी में

*शेफाअत जिस को हो उनको मुयस्सर रोज़-ए-महशर में
वली बन जाएगा जन्नत का वह हक़दार चुटकी में

उशवा तराज़ों- नाज़ नख़रा करने वाले,शेफाअत-सिफारिश,पैरवी




ग़ज़ल :मुनीर अरमान नसीमी(उडीसा)

पिलाया उसने जब से शर्बत-ए- दीदार चुटकी में
नुमायाँ है तभी से इश्क़ के आसार चुटकी में

*ख़िज़ाँ- दीदह था इस से पहले मेरा गुलशने हस्ती
मेरा बाग़-ए-तमन्ना हो गया गुलज़ार चुटकी में

किया अर्ज़े तमन्ना मैंने जब वह हँस के यह बोला
नहीं करते किसी से इश्क़ का इज़हार चुटकी में

तुम्हारी इक निगाहे नाज़ के सदक़े मैं ऐ जानाँ !
हुए हैं *ख़म न जाने कितने ही सरदार चुटकी में

गया वह दौर जब फ़रहाद चट्टानों से लड़ ता था
मगर अब चाहते हैं सब यह पा लें प्यार चुटकी में

हमारे रहनुमाओं के अजब *अतवार हैं अरमाँ
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में

अतवार-तौर-तरीके ,ख़िज़ाँ दीदह-मुर्झाए हुए, ख़म-झुकना